Monday, November 19, 2018
Sunday, November 18, 2018
वोट का अधिकार (मतदान करना कियू जरूरी है )जरूर पढ़ें।
वोट का अधिकार
राजनीति के इतिहास में वोट का हक आया, तो एक क्रांति हुई। इसको लाने में रूसो जैसे विद्वानों की भूमिका तो थी, किन्तु उस समय के व्यापारियों की भूमिका कम नहीं थी। कारखाने लगने लगे थे, पैदावार बढ़ने लगी थी, पड़ोसी देश के व्यापारी को माल बेचने से अकूत मुनाफाखोरी का रास्ता खुल गया था। लेकिन एक देश के व्यापारी को दूसे देश के व्यापारी से मिलने का रास्ता बन्द था। देशों की सीमाओं पर राजा के सिपाहियों का चुस्त पहरा था। यह पहरा व्यापारी की मुनाफाखोरी में बाधक बन रहा था।
इसी अवस्था में रूसो की सोशल कॉन्ट्रैक्ट नामक पुस्तक आई, जिसने राज्य के बारे में एक नई अवधारणा को जन्म दिया। 'राजा पैदा होता है, लेकिन जरूरी नहीं कि राजा के घर में पैदा हो'। इस विचार ने राजदरबाारियों को यह सपना दिखाया कि उनके घर में पैदा हुआ बच्चा राजा हो सकता है। इस विचार ने व्यापारियों को यह सपना दिखाया कि व्यापारियों को परादेशीय सीधा सम्बन्ध बनाने की स्वतंत्रता देने वाले किसी भी व्यक्ति को राजा बनाया जा सकता है। उसे चुनाव लड़ाकर जितवाया जा सकता है और यह प्रचारित किया जा सकता है कि चुनाव जीतने वाला सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्ति है, जनता के हितों का वास्तविक प्रवक्ता है।....यही व्यक्ति जन्मजात राजा है।
क्रांति और शाजिस के इस मिश्रित घटना से राजशाही का अंत हो गया। दो देशों के व्यापारियों का आपसी मेल-जोल आसान हो गया। चुनावी लोकतंत्र आ गया। प्रजा के बेटे को राजा बनने का रास्ता खुल गया। राजनैतिक सत्ता वंशवाद से मुक्त हो गई, वे लोग आजाद हो गए, जो चुनाव लड़ सकते थे, या जो किसी दूसरे को चुनाव लड़वाकर उसे सत्ता की आभासी बागडोर सौंप सकते थे और सत्ता की वास्तविक बागडोर अपने हाथ में रख सकते थे। यह घटना अठ्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध्द की है।
लगभग 200 साल बाद, बीसवीं सदी के अंतिम दशक में भी कुछ ऐसा ही घटा। जिसे लोग विश्व व्यापार समझौता कहते हैं, वास्तव में यह एक तरह का इतिहास का दोहराव था। इस नई व्यवस्था में दो देशों के व्यापारी ही इकट्ठा नहीं हुए, कुछ अमीर उपभोक्ता भी इस गठबंधन में शामिल हो गए। इस बार दो देशों के व्यापारियों की सहज मुलाकात की मांग ही नहीं की गई, इस बार यह मांग भी की गई कि विदेश का व्यापारी चार लाख रूपये में कार बेचने के लिए देश में आया है, देश का एक उपभोक्ता उस कार को खरीदने के लिए तैयार है। ऐसी स्थिति में आयात व निर्यात कर लगाकर चार लाख की कार को पांच लाख की बनाने वाली सरकार कौन होती ह? देशी उपभोक्ता व विदेशी व्यापारी जब मियां-बीबी की तरह राजी हो गए तो सरकार काजी की तरह दुबक गई। राज्य की प्रभुसत्ता का बड़ा हिस्सा विश्व व्यापार संगठन जैसे वैश्विक संगठनों के पास स्थानांतरित हो गया।
यह व्यापारियों व उपभोक्ताओं का परादेशीय गठबंधन है, जिसके सामने सरकार असहाय है। इसके बाद शुरू हुआ विश्व बाजार का, विश्व अर्थव्यवस्था का, विश्व उपभोग का और विश्व आय अर्जित करने का एक नया सिलसिला। इसी घटना के साथ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के नाम से एक नई सत्ता प्रकाश में आई और शासन की आर्थिक नीतियां तय करने का अधिकार इन कम्पनियों ने अपने हाथ में ले लिया। यद्यपि इसमें हाथ की सफाई का पूरा ध्यान दिया गया। इस बात का ध्यान रखा गया कि आम जनता को यही लगना चाहिए कि देश में पहले की तरह ही चुनाव जीतने वाले जनप्रतिनिधि ही शासन कर रहे हैं और वही लोग नीतियां बना रहे हैं। इससे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के संचालकों को बड़ी सुरक्षा हो गई, क्योंकि जब रोजगार देने का श्रेय लेना होगा तो यह श्रेय कम्पनी चलाने वालों को मिलेगा और जब बेरोजगारी की जिम्मेदारी लेनी होगी, तो इस पाप को नेताओं के कंधे पर डाल कर हटा जा सकता है। जनता अपनी आर्थिक तकलीफ के लिए अपने देश के नेताओं से लड़ती रहेगी और चुनाव में पार्टियों का तख्ता पलट करके अपना गुस्सा उतारती रहेगी। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का लाभ उठाने वाले विश्वव्यापारी व विश्वउपभोक्ता दूर बैठ कर यह तमाशा देखते रहेंगे। गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, बीमारी, कुपोषण से छटपठाते लोगों को देख कर मजा लेने वाले लोग इस बात पर पूरी नजर रखे हुए हैें कि जिस तरह व्यापारियों व अमीर उपभोक्ताओं ने विश्वव्यापी संगठन बना लिया, उसी प्रकार कहीं सभी देशों के पीड़ित लोग देशों की सीमाएं तोड़ कर कोई वैश्विक पार्टी न बना लें। इन्हें डर है कि अगर व्यापारियों के वैश्विक संगठन के सामने विश्व भर के पीडिताेंे की विश्वव्यापी पार्टी बन गई तो- नेताओं को पैसे की ताकत से कठपुतली बना कर नचाना सम्भव नहीं रह जाएगा, मनमानी मुनाफाखोरी सम्भव नहीं हो पाएगी, विश्व व्यापार व्यवस्था के कारण गरीबों की हुई क्षति की भरपाई करने के लिए विश्वव्यापारियों को भी अपने मुनाफे में से विश्व स्तरीय कर देना पड़ेगा ... सबसे बड़ी बात यह है कि विश्व व्यापारियों पर भी कानून का शासन लागू हो जाएगा।
Saturday, November 17, 2018
बसपा के समान में सोमवार को ज्यादा से ज्यादा संख्या में खींवसर पहुंचे प्रथ्वी सिंह मेघवंशी
खींवसर विधानसभा क्षेत्र युवा दिलों की धड़कन किसान हितों की बात करने वाला नेता पृथ्वी सिंह मेघवंशी को बसपा प्रत्याशी घोषित करने पर बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं
पृथ्वीसिंह मेघवंशी
सोमवार को भरेंगें नामांकन ।
सभी साथियों से निवेदन हे की सोमवार को ज्यादा से ज्यादा सख्या में पधारकर भाई पृथ्वीसिह जी मेघवंशी को समर्थन दे ।
पृथ्वीसिंह मेघवंशी
सोमवार को भरेंगें नामांकन ।
सभी साथियों से निवेदन हे की सोमवार को ज्यादा से ज्यादा सख्या में पधारकर भाई पृथ्वीसिह जी मेघवंशी को समर्थन दे ।
Monday, November 5, 2018
क्या स्मारक, मंदिर, मस्जिद, के पीछे इस अरबों रुपए बर्बाद करना समझदारी है?
क्या स्मारक, मंदिर, मस्जिद, के पीछे इस अरबों रुपए बर्बाद करना समझदारी है?
शिक्षा का स्तर सुधारने से बहुत सारी समस्या का हल हो सकता है। क्या स्मारक, मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि के पीछे इस तरह अरबों रुपए बर्बाद करना समझदारी है? हम अपने पीछे अपने बच्चों को लिए क्या छोड़ कर जा रहे हैं- अशिक्षा, बेरोजगारी, प्रदूषण, बेतरतीब बढ़ती जनसंख्या।किसके लिए काम
आज हमारे देश में गरीबी, बीमारी, अशिक्षा, प्रदूषण और जनसंख्या सब बेतरतीब बढ़ती जा रही है। सरकारी स्कूल में न तो अच्छे टीचर हैं, न स्कूल का मैन्युअल पढ़ने लायक है। शिक्षकों को क्यों नहीं वह सब सुविधाएं दी जाएं, जिससे कि अधिक से अधिक अच्छे टीचर सरकारी स्कूल में नियुक्त हों और कमजोर तबकों को अच्छी शिक्षा मिले। शिक्षा का स्तर सुधारने से बहुत सारी समस्या का हल हो सकता है। क्या स्मारक, मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि के पीछे इस तरह अरबों रुपए बर्बाद करना समझदारी है? हम अपने पीछे अपने बच्चों को लिए क्या छोड़ कर जा रहे हैं- अशिक्षा, बेरोजगारी, प्रदूषण, बेतरतीब बढ़ती जनसंख्या। इंसान को काम करने के लिए शिक्षा के बुनियादी स्तर को सुधारना होगा। इसके लिए पहले की तरह अच्छे से अच्छे टीचर की जरूरत है।
’ऋचा, मुंबई
अभाव की मुश्किल
हर कुछ दिन पर रसोई गैस के सिलेंडर के दाम में बढ़ोतरी हो रही है जो हमारे लिए यह चिंता का विषय बन गया है। गरीब जनता इस तरह की वृद्धि से त्रस्त हो गई है, जिसका भार उनकी जेब पर पड़ रहा है। इससे जनता की भर पेट भोजन करने की आजादी छिनती दिख रही है। मगर सरकार की नींद नहीं खुल रही है। सरकार को जनता के जीवन के लिए जरूरी चीजों पर ध्यान देना चाहिए, ताकि वह अपने जीवन को सरल और बेहतर तरीके से जी सके। कोई स्टैच्यू बनवाने के बजाय जरूरी चीजों को कम दामों पर उपलब्ध कराना चाहिए। इन मुद्दों पर सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए, अन्यथा इसके परिणाम जनता के लिए और राजनीतिक रूप से हानिकारक साबित हो सकते हैं।
’आशीष करोतिया, दिल्ली विवि
डेंगू का डंक
डेंगू की चपेट में आए बहुत से लोग अनजाने में इसके लक्षण पहचानने में काफी देरी कर दे रहे हैं, जिसकी वजह से यह बुखार गंभीर हो जाता है। डेंगू एक वायरस से होने वाली बीमारी का नाम है जो एडीज नामक मच्छर की प्रजाति के काटने से होती है। वयस्कों के मुकाबले बच्चे ज्यादा इसकी चपेट में आ रहे हैं। कुछ स्थितियों में यह बीमारी जानलेवा भी साबित हो रही है। इस मच्छर के काटने पर विषाणु तेजी से मरीज के शरीर में अपना असर दिखाते हैं, जिसके कारण तेज बुखार और सिर दर्द जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। डेंगू होने पर मरीज के खून में प्लेटलेट्स की संख्या तेजी से घटती है और कई बार जान भी खतरे में पड़ जाती है। डेंगू के मच्छर हमेशा साफ पानी में पनपते हैं, जैसे छत पर लगी पानी की टंकी, घड़ों और बाल्टियों में जमा पीने का पानी, कूलर का पानी, गमलों में जमा पानी आदि। वहीं मलेरिया के मच्छर हमेशा गंदे पानी में पैदा होते है। डेंगू के मच्छर हमेशा दिन में काटते हैं। हमें इस प्रकार के मच्छरों से बचने के लिए ‘मास्कीटो रिपेलेंट’ का प्रयोग जरूर करना चाहिए। अपने घर, बच्चों के स्कूल और आॅफिस की साफ-सफाई पर भी नजर रखना चाहिए। सरकार को भी इसके निदान के लिए गंभीर कदम उठाने की जरूरत है।
’भरत यादव, बीएचयू, वाराणसी
शिक्षा का स्तर सुधारने से बहुत सारी समस्या का हल हो सकता है। क्या स्मारक, मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि के पीछे इस तरह अरबों रुपए बर्बाद करना समझदारी है? हम अपने पीछे अपने बच्चों को लिए क्या छोड़ कर जा रहे हैं- अशिक्षा, बेरोजगारी, प्रदूषण, बेतरतीब बढ़ती जनसंख्या।किसके लिए काम
आज हमारे देश में गरीबी, बीमारी, अशिक्षा, प्रदूषण और जनसंख्या सब बेतरतीब बढ़ती जा रही है। सरकारी स्कूल में न तो अच्छे टीचर हैं, न स्कूल का मैन्युअल पढ़ने लायक है। शिक्षकों को क्यों नहीं वह सब सुविधाएं दी जाएं, जिससे कि अधिक से अधिक अच्छे टीचर सरकारी स्कूल में नियुक्त हों और कमजोर तबकों को अच्छी शिक्षा मिले। शिक्षा का स्तर सुधारने से बहुत सारी समस्या का हल हो सकता है। क्या स्मारक, मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि के पीछे इस तरह अरबों रुपए बर्बाद करना समझदारी है? हम अपने पीछे अपने बच्चों को लिए क्या छोड़ कर जा रहे हैं- अशिक्षा, बेरोजगारी, प्रदूषण, बेतरतीब बढ़ती जनसंख्या। इंसान को काम करने के लिए शिक्षा के बुनियादी स्तर को सुधारना होगा। इसके लिए पहले की तरह अच्छे से अच्छे टीचर की जरूरत है।
’ऋचा, मुंबई
अभाव की मुश्किल
हर कुछ दिन पर रसोई गैस के सिलेंडर के दाम में बढ़ोतरी हो रही है जो हमारे लिए यह चिंता का विषय बन गया है। गरीब जनता इस तरह की वृद्धि से त्रस्त हो गई है, जिसका भार उनकी जेब पर पड़ रहा है। इससे जनता की भर पेट भोजन करने की आजादी छिनती दिख रही है। मगर सरकार की नींद नहीं खुल रही है। सरकार को जनता के जीवन के लिए जरूरी चीजों पर ध्यान देना चाहिए, ताकि वह अपने जीवन को सरल और बेहतर तरीके से जी सके। कोई स्टैच्यू बनवाने के बजाय जरूरी चीजों को कम दामों पर उपलब्ध कराना चाहिए। इन मुद्दों पर सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए, अन्यथा इसके परिणाम जनता के लिए और राजनीतिक रूप से हानिकारक साबित हो सकते हैं।
’आशीष करोतिया, दिल्ली विवि
डेंगू का डंक
डेंगू की चपेट में आए बहुत से लोग अनजाने में इसके लक्षण पहचानने में काफी देरी कर दे रहे हैं, जिसकी वजह से यह बुखार गंभीर हो जाता है। डेंगू एक वायरस से होने वाली बीमारी का नाम है जो एडीज नामक मच्छर की प्रजाति के काटने से होती है। वयस्कों के मुकाबले बच्चे ज्यादा इसकी चपेट में आ रहे हैं। कुछ स्थितियों में यह बीमारी जानलेवा भी साबित हो रही है। इस मच्छर के काटने पर विषाणु तेजी से मरीज के शरीर में अपना असर दिखाते हैं, जिसके कारण तेज बुखार और सिर दर्द जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। डेंगू होने पर मरीज के खून में प्लेटलेट्स की संख्या तेजी से घटती है और कई बार जान भी खतरे में पड़ जाती है। डेंगू के मच्छर हमेशा साफ पानी में पनपते हैं, जैसे छत पर लगी पानी की टंकी, घड़ों और बाल्टियों में जमा पीने का पानी, कूलर का पानी, गमलों में जमा पानी आदि। वहीं मलेरिया के मच्छर हमेशा गंदे पानी में पैदा होते है। डेंगू के मच्छर हमेशा दिन में काटते हैं। हमें इस प्रकार के मच्छरों से बचने के लिए ‘मास्कीटो रिपेलेंट’ का प्रयोग जरूर करना चाहिए। अपने घर, बच्चों के स्कूल और आॅफिस की साफ-सफाई पर भी नजर रखना चाहिए। सरकार को भी इसके निदान के लिए गंभीर कदम उठाने की जरूरत है।
’भरत यादव, बीएचयू, वाराणसी
Sunday, November 4, 2018
SC/ST ACT में अब फंसने पर और बढ़ेंगी मुश्किलें, आरोपी को ही साबित करना होगा खुद को बेकसूर
SC/ST ACT में अब फंसने पर और बढ़ेंगी मुश्किलें, आरोपी को ही साबित करना होगा खुद को बेकसूर
संशोधित एक्ट के मुताबिक, कोर्ट यह मानकर चलेगा कि आरोपी अगर पीड़ित या उसके घरवालों का परिचित है तो उसे पीड़ित की जाति के बारे में जानकारी थी, जबतक कि इसका उलट साबित न हो जाए। इससे पहले तक शिकायतकर्ता पर ही सबूत देने की जिम्मेदारी थी।
अब जातिगत भेदभाव के केस में फंसने वालों की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। संशोधित एसएसटी एक्ट (amended Prevention of SC/ST Atrocities Act या POA) के तहत अब दलित और आदिवासियों के खिलाफ होने वाले अपराध के मामले में आरोपी को ही साबित करना होगा कि वो दोषी नहीं है। संशोधित एक्ट के मुताबिक, कोर्ट यह मानकर चलेगा कि आरोपी अगर पीड़ित या उसके घरवालों का परिचित है तो उसे पीड़ित की जाति के बारे में जानकारी थी, जबतक कि इसका उलट साबित न हो जाए। इससे पहले तक शिकायतकर्ता पर ही सबूत देने की जिम्मेदारी थी।
पिछले शीतकालीन सत्र में संसद ने नया कानून पास किया था, जो मंगलवार से प्रभाव में आ गया। ये कानून ऐसे वक्त में प्रभावी होने वाला है, जब हैदराबाद यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला पूरे देश में छाया हुआ है।
क्या है कानून में:
संशोधित एक्ट में 17 नए अपराधों को शामिल किया गया है, जिसके आधार पर छह महीने से लेकर पांच साल तक की कैद हो सकती है। इनमें ‘अनुसूचित जाति के लोगों या आदिवासियों के बीच ऊंचा आदर हासिल करने वाले’ किसी मृत शख्स का अनादर भी शामिल है। हालांकि, एक्ट में उन मृत आदरप्राप्त लोगों के नाम साफ नहीं किए गए हैं, जिनका ‘लिखित या मौखिक शब्दों से अनादर’ नहीं किया जा सकता।
संशोधित एक्ट में जिन अपराधों को शामिल किया गया है, उनमें सिर के बाल छीलना या मूंछ काटना, चप्पलों की हार पहनाना, सिंचाई की सुविधा देने से इनकार करना, किसी दलित या आदिवासी को मानव या जानवर का शव ठिकाने लगाने के लिए बाध्य करना, जातिगत नामों से गालियां देना, मल ढुलवाना या इसके लिए बाध्य करना, सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार, चुनाव लड़ने से एससी या एसटी कैंडिडेट को रोकना, घर या गांव छोडने के लिए बाध्य करना, एससी या एसटी महिला के कपड़े उतरवाकर उसके सम्मान को ठेस पहुंचाना, महिला को छूना या उसके खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल करना आदि प्रमुख हैं।
अफसरों पर भी होगी कार्रवाई:
इस एक्ट में यह भी कहा गया है कि अगर कोई गैर दलित या गैर आदिवासी पब्लिक सर्वेंट दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर अपनी जिम्मेदारियों का ठीक ढंग से पालन नहीं करता तो उसे छह महीने से लेकर एक साल तक की जेल हो सकती है। नए कानून के तहत एससी और एसटी के खिलाफ मामलों के लिए अलग से कोर्ट बनाने का भी प्रावधान है। इन अदालतों को मामले पर खुद से संज्ञान लेने की आजादी होगी। चार्जशीट दाखिल करने के दो महीने के अंदर ये कोर्ट सुनवाई पूरी कर लेंगे।
संशोधित एक्ट के मुताबिक, कोर्ट यह मानकर चलेगा कि आरोपी अगर पीड़ित या उसके घरवालों का परिचित है तो उसे पीड़ित की जाति के बारे में जानकारी थी, जबतक कि इसका उलट साबित न हो जाए। इससे पहले तक शिकायतकर्ता पर ही सबूत देने की जिम्मेदारी थी।
अब जातिगत भेदभाव के केस में फंसने वालों की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। संशोधित एसएसटी एक्ट (amended Prevention of SC/ST Atrocities Act या POA) के तहत अब दलित और आदिवासियों के खिलाफ होने वाले अपराध के मामले में आरोपी को ही साबित करना होगा कि वो दोषी नहीं है। संशोधित एक्ट के मुताबिक, कोर्ट यह मानकर चलेगा कि आरोपी अगर पीड़ित या उसके घरवालों का परिचित है तो उसे पीड़ित की जाति के बारे में जानकारी थी, जबतक कि इसका उलट साबित न हो जाए। इससे पहले तक शिकायतकर्ता पर ही सबूत देने की जिम्मेदारी थी।
पिछले शीतकालीन सत्र में संसद ने नया कानून पास किया था, जो मंगलवार से प्रभाव में आ गया। ये कानून ऐसे वक्त में प्रभावी होने वाला है, जब हैदराबाद यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला पूरे देश में छाया हुआ है।
क्या है कानून में:
संशोधित एक्ट में 17 नए अपराधों को शामिल किया गया है, जिसके आधार पर छह महीने से लेकर पांच साल तक की कैद हो सकती है। इनमें ‘अनुसूचित जाति के लोगों या आदिवासियों के बीच ऊंचा आदर हासिल करने वाले’ किसी मृत शख्स का अनादर भी शामिल है। हालांकि, एक्ट में उन मृत आदरप्राप्त लोगों के नाम साफ नहीं किए गए हैं, जिनका ‘लिखित या मौखिक शब्दों से अनादर’ नहीं किया जा सकता।
संशोधित एक्ट में जिन अपराधों को शामिल किया गया है, उनमें सिर के बाल छीलना या मूंछ काटना, चप्पलों की हार पहनाना, सिंचाई की सुविधा देने से इनकार करना, किसी दलित या आदिवासी को मानव या जानवर का शव ठिकाने लगाने के लिए बाध्य करना, जातिगत नामों से गालियां देना, मल ढुलवाना या इसके लिए बाध्य करना, सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार, चुनाव लड़ने से एससी या एसटी कैंडिडेट को रोकना, घर या गांव छोडने के लिए बाध्य करना, एससी या एसटी महिला के कपड़े उतरवाकर उसके सम्मान को ठेस पहुंचाना, महिला को छूना या उसके खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल करना आदि प्रमुख हैं।
अफसरों पर भी होगी कार्रवाई:
इस एक्ट में यह भी कहा गया है कि अगर कोई गैर दलित या गैर आदिवासी पब्लिक सर्वेंट दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर अपनी जिम्मेदारियों का ठीक ढंग से पालन नहीं करता तो उसे छह महीने से लेकर एक साल तक की जेल हो सकती है। नए कानून के तहत एससी और एसटी के खिलाफ मामलों के लिए अलग से कोर्ट बनाने का भी प्रावधान है। इन अदालतों को मामले पर खुद से संज्ञान लेने की आजादी होगी। चार्जशीट दाखिल करने के दो महीने के अंदर ये कोर्ट सुनवाई पूरी कर लेंगे।
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