Thursday, August 30, 2018

बाबा रामदेव जी व ठाकुर अजमाल का इतिहास

ठाकुर अजमाल जी व  बाबा रामदेव जी का इतिहास


जिन्होने राजस्थान के लोकदेवता बाबा रामापीर के इतिहास व लोक साहित्य का कभी  कोई गहन अध्ययन ही नही किया ..  वे लोग बाबा रामापीर को केवल अजमल घर अवतारी ( अर्थात किसी पालणे मे प्रकट ) ही मानते है ..  जबकि उनका जन्म सायर जी मेघवाल (गोत्र जयपाल ) के घर मां मंगनीदे की कोख से हुआ था ..  ठाकुर अजमाल जी के आदेशानुसार ही सायर जी मेघवाल ने अपने नन्हे बालक रामदेव को रहस्यमय ढंग से उनके घर बीरमदेव के पालणे मे सुलाया था ...  

मध्यकालीन सामंतकाल मे उस समय छुआछुत के कारण ठाकुर अजमाल जी ने उन्हे मेघवंशी न बतलाकर अपने घर पालणे मे प्रकट ही बताया..  क्यो कि ठाकुर अजमाल जी एक सच्चै मानवतावादी संत महापुरुष थे ...  उऩ्हे मेघवंशियो से कोई घृणा नही थी ..  इसिलिये उन्होने जिवन भर कभी बाबा रामदेव को मेघवालो के घर आने जाने व उन्ही के साथ जम्मा जागरण करने पर कोई ऐतराज नही किया ...  जबकि अजमाल जी के भाई धनरूप जी की बेटी सुगणा के ससुराल पुंगलगढ वाले तो इसिलिये बाबा रामदेव से बेहद नफरत करते थे ...  

इसिलिये तो बाबा रामसापीर के समकालीन किसी भी राव भाट चारण कवि या किसी सामंत ने उनकी कोई महिमा बखाण नही की ..  

मानवता के पुजारी परम श्रद्धेय ठाकुर अजमाल जी जैसे महामानव उस समय कोई हुआ और न कोई होगा ..  क्यो कि वे जातपात से उपर उठ कर मानवता के सच्चै पुजारी थे . वे हिंदु मुस्लिम झगड़ो के कोई पक्षधर भी नही थे इसलिये उन्होने हिंदु मुस्लिम झगड़ो मे अपने पिता रणसी व अपने सगे भाईयो की मृत्युपरांत भी बदले की भावना न रखकर भाई धनरूप की दौनो पुत्री लाछा और सुगणाबाई का सुरक्षित  पालन करते हुऐ तुंवरावटी / नरेणा इत्यादी को छोड़कर शांति व भाईचारे के लिये मारवाड़ की पावन धोरा धरती मे राठोड. रावल मालदे जी की शरण ली ..  इस बात का भी इतिहास गवाह है कि मेघवालो के साथ तो इनका  सहचर्य पीढीयो से  जुड़ा है .  क्यो कि ठाकुर अजमाल के पिता  रणसी जी के साथ मुहम्मद गोरी की वार मे एककमात्र खिवण जी मेघवाल ने अपने शरीर को ही करोत से कटवा दिया था जिसके ऐतिहासिक ताम्रपत्र आज भी मोजुद है ...  इस प्रकार मेघवालो के साथ इनका सहचर्य तो पीढीयो से जुड़ा था 

इसिलिये उन्होने अपने परमानुयायी सेवक सायर मेघ के पुत्र. को अपने घर पालने मे पोढाने से  कोई ऐतराज नही था ..  


कुछ लोग यह सोचते होंगे कि जब ठाकुर अजमाल जी के घर बीरमदेव का जन्म हो चुका था तो फिर उन्होने सायर जी मेघवाल के पुत्र रामदेव को अपने घर पालणे मे क्यो जगह दी ..  ? 

इसकी एक ही मुख्य कारण था कि मेणादे की कोख से कभीे कोई संतान नही जन्मी थी ...  अर्थात मेणादे को कोई पुत्र नही जन्मा था ..  

अब आप सभी प्रबुद्ध पाठक यह सोच रहे होंगे कि बीरमदेव किसका पुत्र था ?  

बीरमदेव मेणादे का पुत्र नही था ..  वह ठाकुर अजमाल की पहली पत्नी रुण गांव वाली का पुत्र था ..  इसका ऐतिहासिक प्रमाण हमे रामदेवरा के कुंवर अमरसिंह तंवर की पुस्तको मे देखने को मिला 

...  ..  

अब आगे प्रबुद्ध पाठको पर निर्भर है कि वे जातिवाद को मद्देनजर रखकर इस पोष्ट पर टिप्पणी करेंगे या सत्य का समर्थन करेंगे 


यह आप पर निर्भर है।  जय बाबा री सा

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